"मेरा मन"
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Sunday, 29 December 2019
स्वीकार
न जीना
आसान है
न मरना,..!
लेकिन
फिर भी
जी रही हूँ,..!
तुमसे दूर हूँ
और
तुम्हारे साथ भी,..!
तुम निराकार हो
तुम
साकार भी,..!
तुम ही स्वप्न हो
और
जीने का आधार भी,..!
सुनो!
सच
सिर्फ यही है,..!
प्यार यही है
तो
मुझे स्वीकार भी,..!
प्रीति सुराना
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