परिंदे घर लौट आते हैं
जब उड़ना सीख जाते हैं
जड़ें गहरी हो जिनकी
पेड़ वो ही जी पाते हैं
हालातों से लड़कर जीते
सिकंदर वही कहलाते हैं
जुनून न हो जब इरादों में
भाग्य का दोष बताते हैं
लदे कंधों पर विक्रम के
खुद वेताल बन जाते हैं
भरोसा करके मरते है
जो रिश्ता निभाते हैं
दुनिया की रीत है ये तो
जो आते हैं वो जाते हैं
सूरज जब खुद जलता है
तब जीव प्रकाश पाते हैं
प्रीत सतत बढ़ो आगे
सूर्य-पृथ्वी सिखाते हैं
प्रीति सुराना
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