किसकी बात करती हो साहिबा??
स्त्री तो सतयुग से बदनाम है
त्रिया चरित्र के नाम पर संसार के निर्माण से आज तक
राम के युग मे अग्निपरीक्षा दी तब से,..!
और स्त्री आज अर्धनग्न वस्त्रों के लिए बदनाम नहीं
वो तो बदनाम है रजस्वला द्रौपदी का
राजदरबार में बुजुर्गों के सामने चीरहरण हुआ तब से,..!
स्त्री आज चौराहे पर बलात नहीं जलाई गई
स्त्री तो सती होती आई है सदियों से,.!
आज स्त्री नोची जाती है, ठगी जाती है,
मार डाली जाती है सरेआम,..!
सुनो स्त्री,..!
अपने दुख दर्द मत बताना किसी को,
जिस पर यकीन करोगी वो साबित कर देगा चरित्रहीन,
जिससे मदद मांगोगी वो कहेगा
आदरणीया इससे आपकी ही बदनामी होगी
क्योंकि आप महिला हैं।
हाँ स्त्री,..!
तुम जान लो कि तुम जब तक उपयोगी सामान हो तन मन या धन से,
सिर्फ तब तक आदरणीया, माँ, बहन, पत्नी, संगिनी या जिंदगी हो।
तुमने आवाज़ उठाई या उपयोगिता खत्म हुई
बसस्स रिश्ता खत्म,...!
और तुम
किसकी बात करती हो साहिबा
किससे मंगोगी न्याय???
हाथ जोड़े आदरणीय से
सफेद पोश नेताओं से
या खाकी पहने पुलिस कर्मी से????
किससे मंगोगी कांधा,
हाथ थामने का अधिकार,
सुरक्षा हेतु मदद की गुहार,
हर सफेद के पीछे काला है,
हर कंधा देने वाला
दरअसल मतलबपरस्त है,..!
धिक्कार है,..!
ऐसे हर पुरुष पर जो ये कहता है
चुप रहो बदनाम हो जाओगी,..!
अच्छा हुआ हवस की शिकार उस स्त्री को जला दिया गया,..
समानाधिकार की बात करता दोगला समाज वैसे भी जीने नहीं देता।
देखा है सुना है भोगा है हश्र
इस मिट्टी की हर स्त्री ने पुरुष सत्ता का दर्द
सीता, द्रौपदी, मीरा, लक्ष्मीबाई जैसी अनेक स्त्रियों से लेकर
निर्भया, दामिनी, नवजनमी अबोध बालिका
या बाल उम्र की कन्याओं से प्रियंका जैसी सुशिक्षित स्त्री ने,...!
भोगा है
डर, पीड़ा, दाह की जलन, सबकुछ
परिवार, पत्रकार, पुलिस, नेता, समाज के ठेकेदार,
सबकी नजर में स्त्री सिर्फ भोग्या है या चरित्रहीन
जिसे जीते जी नर्क ही भोगना है।
बस
आज का नर्क आधुनिक है सर्व सुविधायुक्त
अब मर्जी तुम्हारी
स्त्री तुम्हें जीते जी जलना है
या
मरकर जलना चाहती हो।
यदि
मरकर जलना चाहती हो
तो चुप रहो और सहो,
देवी के रूप में पूजी जाओ
और उसी पुण्य भूमि में रौंदी जाओ,..!
अच्छा हुआ प्रियंका
तुम जला दी गई
रोंगटे खड़े होते हैं सोचकर
अगर तुम जिंदा होती तो??????
प्रीति सुराना
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 30 नवंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,
निः शब्द हूँ पढ़कर 😓😓
ReplyDeleteसत्य
ReplyDeleteसत्य.. इस घटना पर क्या कहें कुछ समझ नहीं आ रहा.. बस निशब्द हैं...
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