चश्मे का नम्बर
कुछ ठोकरें
हमनें जीवन में
इसलिए भी खाई
क्योंकि
नज़र के चश्मे का नम्बर
तो बदलते रहे
लेकिन
बदलते दौर में
लोगों को परखने के लिए
न अपनी सोच बदल पाए
न नज़रिया
आँसुओं से धुली आँखों से
हमेशा सब साफ ही लगे,....!
प्रीति सुराना
नागपुर विथ पापा
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