पैगाम
मेरी खामोशी
पैगाम है
एक ऐसी ही बाढ़ का
जो इंतज़ार में है
सब्र के बांध के टूटने का,..!
हर बात की अति की तरह
अति वृष्टि और अति शांति
दोनों ही प्रकृति के लिए
विनाशक होती है,...!
और हाँ
कुछ भी नहीं होता
बेसबब,
हर बात की होती है
कोई न कोई वजह,..!
वृक्षारोपण, स्वच्छता,
तीज-त्योहार, क्षमापना
ये सभी निदान है
जो देते हैं अवसर
पुनर्स्थापना के,..!
जरूरत है सिर्फ चिंतन की
सार्थक चिंतन देता है सोच को नए आयाम,..!
(बालाघाट वैनगंगा में डूबे वृक्षों, मंदिरों को डूबते देखते हुए,.. बस यूँ ही)
प्रीति सुराना
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 10 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह अलग ही अंदाज, बहुत सुंदर प्रस्तुति।
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