अमृता, अमृता रही
इमरोज़, इमरोज़ रहा
किताबों में दर्ज थी
दास्तान हमनें पढ़ी
कुछ भूल गए कुछ याद रहा
उंगलियों का क्या उठती रही
अमृता अमृता रही
इमरोज़ इमरोज़ रहा
इश्क इश्क था जीता रहा!
इश्क इबादत सा
इश्क जिंदगी सा
साहिर का क्या?
उसे जाना था चला गया
अमृता अमृता रही
इमरोज़ इमरोज़ रहा
इश्क इश्क था जीता रहा!
भावनाओं को दोनों ही
कलम से गढ़ते रहे
एक नए नित चित्र रचे
एक ने कविताएं गढ़ी
अमृता, अमृता रही
इमरोज़, इमरोज़ रहा
इश्क इश्क था जीता रहा!
खुद को सुना तन्हा बैठे
भीतर बहुत शोर था
एक थे अमृता-इमरोज़
नियति का लिखा कुछ और था
अमृता, अमृता रही
इमरोज़, इमरोज़ रहा
इश्क इश्क था जीता रहा!
प्रीति सुराना
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