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सोचा था कि बादल उमड़े हैं तो धरा की तपन कम होगी सोचा न था उमस इतनी बढ़ जाएगी और घुटन होगी सूरज तो हमेशा से स्थिर है और धरा भी घूमती है सतत अपनी धुरी पर पर मौसम की रुसवाई जाने कहाँ शुरू कहाँ ख़तम होगी?
प्रीति सुराना
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