सुनो!
ऐसा नहीं है
कि तुमसे पहले
मेरा कोई अस्तित्व नहीं था,
और
न ही ऐसा है
कि तुमसे अलग मेरा अस्तित्व नहीं है!
माना
जीवन के लिए
आवश्यक तत्व
रोटी, कपड़ा और मकान है
जो शरीर की जरुरतों को
पूरा करते हैं!
लेकिन
जीने के लिए
यानि
मन से खुश होकर जीने के लिए
स्नेह, समर्पण और संतुष्टि
अति आवश्यक है!
स्नेह से
मन पुष्ट होता है,
समर्पण से
सुरक्षा का अहसास होता है,
और
संतुष्टि से संपूर्णता महसूस होती है!
पुष्ट, सुरक्षित और संतुष्ट मन
रोटी कपड़ा और मकान में
अल्पाधिक्य में सामंजस्य बना सकता है
लेकिन
स्नेह, समर्पण और संतुष्टि का अभाव
जीवन को दुश्वार कर देता है!
हाँ!
सिर्फ इसीलिये कहती हूँ हमेशा
मैं थी तुम्हारे बिना भी
मैं हूँ तुमसे अलग भी
लेकिन
मेरे होने को अर्थ मिलता है
तुमसे मिले स्नेह, समर्पण और संतुष्टि से ही!
और
यही अर्थ
इस बात को प्रमाणित करता है
तुम्हारे होने से मेरे होने का अर्थ है
सच!
तुम हो तो ही मैं हूँ,...!
डॉ प्रीति समकित सुराना


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