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उनकी ज़िद थी मैं झुकूँ और मैं समझी ही नहीं टूटकर फिर से झुकूँ कैसे???
प्रीति सुराना
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 19/03/2019 की बुलेटिन, " किस्मत का खेल जो भी हो “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह
टूट गयी होती तो कोई प्रश्न न उठता..अभी जान बाकी है..
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 19/03/2019 की बुलेटिन, " किस्मत का खेल जो भी हो “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteटूट गयी होती तो कोई प्रश्न न उठता..अभी जान बाकी है..
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