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आँसुओं को पलकों में छुपा लेती हूँ, सिसकियाँ भी सीने में दबा लेती हूँ, अपनों के दिये ज़ख्म जब दुखते हैं, शब्दों को जज़्बातों में डुबा लेती हूँ,..!
डॉ. प्रीति सुराना
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