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कुछ भी लिखते हुए सिर्फ ये कोशिश करती हूँ जो कहना चाहती हूँ वो समझने में पाठक को हो सुविधा कभी ध्यान ही नहीं गया जो मैंने कहना चाहा या लिखा लोग कहने लगे हैं ये भी है काव्य की एक विधा
प्रीति सुराना
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