Friday, 15 February 2019

पीड़ा तो मेरी सखी है पुरानी

पीड़ा तो मेरी सखी है पुरानी
खुशियों ने की है सदा बेईमानी

मुझपर जो बीता है
भीतर जो रीता है
किसको दिखाऊँ
कैसे बताऊँ
काफी नहीं है, बताऊँ जुबानी,
खुशियों ने की है सदा बेईमानी
पीड़ा तो मेरी सखी है पुरानी

मन है ये प्यासा
चहुँ दिश निराशा
सूखा पड़ा है
खाली घड़ा है
बचा है जरा सा, बस आँखों में पानी,
खुशियों ने की है सदा बेईमानी
पीड़ा तो मेरी सखी है पुरानी

तेरे बिन अधूरा
जीवन है मेरा
न करना बहाना
बस लौट आना
सच है यही, ये न कोई कहानी,
खुशियों ने की है सदा बेईमानी
पीड़ा तो मेरी सखी है पुरानी,..!

बदल दे इरादे
बाकी है वादे
न ही खुद को सता
न दे मुझको सजा
अब आ भी जा, बीते जिंदगानी,
खुशियों ने की है सदा बेईमानी
पीड़ा तो मेरी सखी है पुरानी,..!

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 75वीं पुण्यतिथि - दादा साहेब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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