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जख्मों को कुरेद कर नासूर कर रही हूँ, दर्द के नशे में खुद को चूर कर रही हूँ, सूरज की खता नहीं है, वो तो रोज निकलता है, आँखे बंद करके मैं ही रोशनी को दूर कर रही हूँ,...
प्रीति सुराना
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