Saturday, 29 December 2018

संवर के देखा

जी करके देखा
मर-मर के देखा।

पहले टूटकर फिर
बिखर के देखा।

असम्भव लगा जो
वो करके देखा।

दुर्गम रास्तों से
विचर के देखा।

यादों की गलियों से
गुज़र के देखा।

निश्छल निर्झरणी सा
झर-झर के देखा।

अन्तर की गहनता में
उतर के देखा।

चलते हुए पलभर
ठहर के देखा।

निडरता को छुपाया
और डर के देखा।

भावों के सागर से
उबर के देखा।

मन को गुबारों से
भर-भर के देखा।

जब बिखरे बहुत 'प्रीत'
तब संवर के देखा।

प्रीति सुराना

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