मतभेद हो तेरे-मेरे
मनभेद न कभी बने,
फैसले जो भी हो
फासले न कहीं ठने।
जब भी बढ़े दूरियाँ
कुछ पल हम थमे,
कुछ करें ऐसा कि मन
सुखद स्मृतियों में रमे।
सपनों और यादों की
कोई नई चादर बुने,
गहन प्रेम का रंग हो
चादर का जो हम चुने।
मस्तिष्क के परे चलो
सिर्फ मन को ही गुने
मौन आँखों को पढ़ें
और न कुछ कहें-सुने।।
प्रीति सुराना
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