copyrights protected
हाँ!
आजकल अपने आसपास तनहाइयाँ बुन रही हूँ,..
अनकहा अनसुना अंतर्नाद सुन रही हूँ,..
भीड़ से दिखावे से दूर कुछ अलग सा गुन रही हूँ,..
लड़ते-लड़ते थककर लड़ाई अपने अस्तित्व की खामोशियाँ चुन रही हूं,....
प्रीति सुराना
No comments:
Post a Comment