copyrights protected
परेशानियों का एक अजब सा ही दौर है चाहती कुछ और हूँ होता कुछ और है तन-मन-धन-जन व्यथित चहुँ ओर से हूँ मिठाई की कल्पना और कड़वाहट का कौर है,.. प्रीति सुराना
No comments:
Post a Comment