"कुछ नहीं"
हैलो सुनिधि!
हाँ बोलो!
तुम क्या कर रही हो अभी?
कुछ नहीं, बोलो क्या हुआ,कोई विशेष बात?
हाँ! आज मेरा एक मित्र और बॉस डिनर के लिए आ रहे हैं, मेरे टिफिन का तुम्हारे हाथ का खाना दोनों को बहुत पसंद है, बोलो तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं?
नहीं, कोई दिक्कत नहीं, मैं तैयारी करती हूँ।
फोन कट करके सुनिधि गुनगुनाती हुई घर को सजाती हुई सोचने लगी क्या क्या बनाएगी शाम के खाने में।
अचानक उसे याद आया कि 7 बजे शलभ घर आएंगे और ठीक वही समय बिट्टी (स्निग्धा) को ट्यूशन से वपास लाने के लिए उसकी गाड़ी के स्टॉप तक जाने का है।
फिर अचानक न जाने क्या सूझी फटाफट खाना बनाया और तैयार हो गई, गार्डन से कुछ फूल तोड़ लाई। कुछ कागजों में छोटी छोटी चिट्ठियां बनाई। मेज पर गुलदस्ता सजाया। अलग अलग जगह कुछ पर्चियां छुपाई। तब तक स्टॉप तक जाने का समय हो गया। जाकर वापस लौटने में उसे 20 मिनट लगने थे। अभी 6:50 बजे थे।
शलभ को फोन करके बताया और निकल पड़ी।
ठीक सात बजे शलभ पहुंचा।
घर पर ताला लगा देख रोहित ने चुटकी ली हमारे आने की खबर से ही भाभी गायब,... 😊।
शलभ ने मुस्कुराते हुए जेब से दूसरी चाबी निकली और दरवाजा खोला। रोहित और बॉस भी अंदर आए। तभी मेज पर रखे गुलदान से प्यारी सी आवाज़ आई 'आप दोनों का हमारे छोटे से आशियाने में स्वागत है।' आइये बैठिये। एक छोटे से अंतराल के बाद गुलदान ने फिर कहा। मेज पर शीतल पेय आप सभी का इंतज़ार कर रहा है। शलभ समझ चुका था। झट से मेज से ट्रे उठाई और दोनों को पेय प्रस्तुत किया और खुद भी एक गिलास हाथ में लेकर बैठ गया।
सुनिधि के निराले अंदाज से अचंभित दोनो मेहमान शलभ को कुरेदने लगे और जवाब में शलभ की मौन मुस्कान के अलावा कुछ नहीं। पेय के खत्म होते ही मेज पर गिलास वापस रखकर दोनो ही कुछ पूछते उससे पहले ही दरवाज़ा खुला। दौड़ कर स्निग्धा पहले भीतर आई और सबको नमस्ते करके शलभ की गोद मे जा बैठी। तभी सुनिधि ने सभी को मुस्कुराते हुए अभिवादन किया, हालचाल पूछे और खाना लगाने की तैयारी की इजाजत मांगी। शलभ ने सभी के हाथ धुलवाए और खाने की सुंदरता से सजी मेज पर पहुंचे।
सुनिधि की प्यारी मुस्कान, स्निग्धा की चुलबुलाहट और शलभ की शालीनता के साथ स्वादिष्ट भोजन के बाद एक बार फिर सभी बैठक में आ गए।
कुछ औपचारिक बातों के बाद अचानक रोहित ने सुनिधि से पूछा 'भाभी आप क्या करती हैं, मतलब आपकी पढ़ाई , जॉब वगैरह कुछ।'
सुनिधि ने कहा पढ़ाई तो एमबीए तक की है पर करती 'कुछ नहीं'।
उसका ये वाक्य खत्म होते होते ही शलभ बोल पड़ा कि इसका एक ही जवाब कुछ नहीं के पीछे मेरा सब कुछ करना छुपा है क्योंकि मां बाबूजी जो अभी चारोधाम की यात्रा पर हैं से लेकर स्निग्धा तक घर-बाहर की सारी जिम्मेदारियों से मुक्त, सुकून और शांति हमारे जीवन में है। उसकी वजह इनका मैनजमेंट ही तो है जो इनके कुछ न करके भी सबकुछ करने में शामिल है।
तरक्की पर तरक्की के बाद के बाद इसकी मुस्कान, सेवा , देखभाल और इस मैनेजमेंट के लिए अपनी सारी तनख्वाह सीधे सुनिधि के हाथ में लाकर रख देने के बाद उसकी जगह जब खुद को रखता हूँ तो पाता हूँ मैं कुछ नहीं करता और जो कुछ करता हूँ वो सुनिधि के कुछ नहीं करने के कारण है। ये अपने घर को ही एम बी ए की कार्यशाला मानती है।
अविवाहित रोहित और विवाहित बॉस दोनों ही एक साथ अपने जीवन में ऐसे ही कुछ नहीं करने वाली जीवन संगिनी की कल्पना करके मुस्कुरा उठे।
कुछ देर और बातचीत और एक चाय के दौर के बाद दोनों ने विदा ली।
अगली सुबह शलभ की मेज पर एक गुलदस्ता और साथ में एक छोटी सी पर्ची के साथ एक लिफाफा था।
पर्ची पर लिखा था एक और प्रमोशन की बधाई पर इस बार तरक्की का श्रेय आपकी लगन और निष्ठा को नहीं बल्कि सुनिधि के कुछ नहीं करने को है।
गुलदान में लगे स्पीकर से आवाज़ आई शलभ भाभी के अंदाज़ में भाभी की तरक्की की बधाई , और सभी खिलखिला कर हँस पड़े।
डॉ. प्रीति सुराना
वारासिवनी (मप्र)
9424765259
21/08/2018
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