सुनो!
मेरा तुममें
और
तुम्हारा मुझमें होना
ये भाव आल्हादित करता
है,...
मेरा तुम्हारा अर्धांग हो कर
मिलना और पूर्ण होना भी
परम सुखदायी है
पर
कभी सोचना
हाथ थाम कर चलना
कंधे पर सिर रखकर
अपनी पीर की नमी छोड़ जाना
जाते हुए को हाथ थामकर रोक लेना
और ऐसी ही अनेक कामनाओं को
तुम्हारे सिवा पूर्णता मिले तो कैसे??
कभी हम
कभी हम तुम
कभी सिर्फ मैं और तुम
बहुरंगी रिश्ता
मेरा तुम्हारा हमारा
जिसमें सिमट कर समाहित हो जाती
सम्पूर्ण सृष्टि,... है ना??
प्रीति सुराना
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