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अंतस में अनजानी पीड़ा का सैलाब आया आंखों की कोरों ने बेबस होकर छलकाया मत रो मेरे मन जो होना था वो हो ही हुआ हौले से ये मैंने फिर अपने मन को समझाया
प्रीति सुराना
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