मेरी बगिया में
फूल बहुत हैं
मुझे लुभाते हैं
अपने रंगों और खुशबू से,
कभी-कभी
मैं खुद को कोसती हूँ
क्योंकि
कटाई-छटाई,
गुढ़ाई-सफाई,
सब में कहीं न कहीं
मैं पहुँचाती हूँ
न चाहते हुए भी
पीड़ा इन सबको,..
पर
दूसरा पहलू ये भी तो है
कि बच्चों की परवरिश का
एक पक्ष यह भी है,...
पौधे मैंने रोपें हैं
तो उनके विकास की जिम्मेदारी भी तो मेरी है
सुनो!
मैं कभी-कभी
बच्चों के लिए भी तो सख्त हो जाती हूँ
ताकि कोई रोक न सके
उनके बढ़ते कदमों को,..
वो कदम
जिसे बढ़ाना सीखने के पहले
मैंने ही तो
कई-कई बार
गिरने दिया, लड़खड़ाने दिया
ताकि जब मजबूती से अपनी जड़ें
जीवन की बगिया में जमा लें
तो खूब बढ़ें, फले, फूलें,...
मेरे बच्चे भी, मेरी बगिया भी!
डॉ प्रीति समकित सुराना
बहुत ही सुंदर सन्देश देती प्यारी रचना, आप को भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं
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