मैं
शिकायतें, दुख, उलाहने,
बुराई, डर, नफरत, गुस्सा,
सब कुछ भूलना चाहती हूँ
अमन, प्रेम, खुशियाँ,
अच्छाई, हिम्मत, दोस्ती, रिश्ते
कण-कण में,
जिस्म से रुह तक
रट लेना चाहती हूँ
ताकि
बदल सकूँ अपने आसपास का दायरा
या गढ़ना चाहती हूँ
एक सकारात्मक औरा अपने चारों ओर।
जो भी आए इस दायरे में महसूस करे
सुरक्षित, शांत और खुश खुद को,
तमाम विकृतियां इस दायरे के बाहर छोड़कर,
भीतर सिर्फ और सिर्फ सकरात्मता,
हाँ!
आज याद आ रहा है बचपन
जब टीचर होमवर्क में दिया करते थे
सौ-सौ बार लिखने को वो तमाम शब्द
जो हम गलत लिखते थे
और सच!
आज भी दोबारा वो गलती नहीं होती लिखने में।
सुलेख लेखन की तरह
जिंदगी में भी बुराई को अच्छाई में बदलने का एक तरीका
ये भी तो हो सकता है न??
क्यों दें महत्व बुराई की बात को
दोहरा कर उसको बार-बार चर्चा में क्यों रखें
बुराई को नकारना भी
अच्छाई का स्वागत हो सकता है न???
आओ न करें एक कोशिश
बचपन की तरह फिर से
गलतियों को सुधारने के लिए
सुलेखन का अभ्यास करके,...!
प्रीति सुराना
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