मान लिया कि मिज़ाज मेरा भी पत्थर सा ही है दोस्तों।
मगर रोती बहुत हूँ जब भी टूटती हूँ सच ये भी है दोस्तों।
लोग कहते हैं किसी का दिल पत्थर भी हो सकता है
हाँ! हो सकता है पत्थर दिल फिर भी धड़कता है दोस्तों।
चोट से टूटकर रेत होते हुए पत्थर को सबने देखा होगा
फिर ज़रा सी हवा और ठोकरों से भी बिखरता है दोस्तों।
कुछ लोग पत्थरों को भी मजहबों में बाँट लेते हैं
मगर दर्द होता है उसे भी जितना बँटता है दोस्तों।
प्रीत की ही मूरत सारे जहाँ में पूजी जानी थी
मगर इस मूरत को सिर्फ नफरतों ने तोड़ा है दोस्तों।
प्रीति सुराना
No comments:
Post a Comment