नए जख्म सबको दिखते बहुत हैं
पुराने जख्म दिल में दुखते बहुत हैं
जख्म तो आखिर जख्म ही होते हैं
पर कांटों से मन में गड़ते बहुत हैं
उलझने पुरानी सुलझती नहीं है
नए लोग आकर उलझते बहुत हैं
समय की आदत चलते ही जाना है
और कमजोर राही रुकते बहुत हैं
इधर-उधर की जो सुनते है अकसर
सही बात पर वो ही चुकते बहुत हैं
सुना है कद जिनका होता है ऊंचा
विनम्रता से वो ही झुकते बहुत हैं
मैं ने ये सोचा है 'प्रीत' अब न रोकूँगी
ये आंसू सूखकर तो चुभते बहुत हैं
प्रीति सुराना
बहुत अच्छा लेख है Movie4me you share a useful information.
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