आज भूली हुई दासतां,
सोचती हूं लिखूं मैं यहां,
ढूंढती मैं जिसे पास में,
वो न जाने गया है कहां,..
पीर मेरी सुने तो कभी,
देख ले आंख की ये नमी,
लौट के आ करूं प्रार्थना,
आस में सांस मेरी थमी,..
मान ली हार मैंने यारा,
तू मुझे दे न ऐसी सजा,
जो हुआ था भुला दे उसे,
फासले आज सारे मिटा,... प्रीति सुराना
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