Saturday 12 October 2019

कुछ लम्हों में

सबने बचपन में तुतलाती भाषा तो बोली होगी
बचपन से अपने आज की खुशियाँ भी तोली होगी

पहले डायरी में दिल की बात लिखा करती थी
मालूम नहीं था पन्नों के रंग में भी तबदीली होगी

कतरा-कतरा बिखरे बचपन की यादों के पन्ने
तब न सोचा था एक रोज़ यूँ आँखें गीली होगी

आज जो मैं करने बैठी सफाई दीवाली की
क्या मालूम था मन में यादों की होली होगी

वो पल भी आज आँखों से गुजरा फिर से
बाबुल के आँगन में दुल्हन, द्वार खड़ी डोली होगी

आज बहाना चाहे घर की सफाई का था
कभी तो सबने यादों की गठरी टटोली होगी

पूरा जीवन इन कुछ लम्हों में दोहराया है 'प्रीत'
बस वो पल याद नहीं जब दुनिया में आंखें खोली होगी।

प्रीति सुराना

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