*नर्क चतुर्दशी (रूप चौदस) की कथा और महत्व
इस दिन यमराज के लिए करें दीपदान*
दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। दीपावली पर्व के ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली, रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है।
दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।
*क्या है इसकी कथा*
इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दांत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारात सजाई जाती है।
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।
यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।
यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था,यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।
तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
*क्या है इसका महत्व*
इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दिया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दिए को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।
*काली चौदस भी कहते हैं बंगाल के लोग*
रूप चौदस कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को कहते है। इसे नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। बंगाल में यह दिन माँ काली के जन्म दिन के रूप में काली चौदस के तौर पर मनाते है। इसे छोटी दीपावली भी कहते है। इस दिन स्नानादि से निपट कर यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित किया जाता है। संध्या के समय दीपक जलाये जाते है। तेरस, चौदस और अमावस्या तीनो दिन दीपक जलाने से यम यातना से मुक्ति मिलती है तथा लक्ष्मी जी का साथ बना रहता है।
रूप चौदस का यह दिन यह अपने सौन्दर्य को निखारने का दिन है। भगवान की भक्ति व पूजा के साथ खुद के शरीर की देखभाल भी बहुत
जरुरी होती है। रूप चौदस का यह दिन स्वास्थ्य के साथ सुंदरता और रूप की आवश्यकता का सन्देश देता है।
रूप चौदस के दिन सुबह जल्दी उठकर शरीर पर तेल की मालिश की जाती है। कुछ लोग तेल में हल्दी, गेहूं का आटा, बेसन आदि मिलाकर उबटन बना कर इसे शरीर पर लगाकर नहाते है। नहाने के पानी में चिचड़ी (अपामार्ग) के पत्ते डाले जाते है। इस स्नान को अभ्यंग स्नान कहते है।
कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर का वध करने के बाद तेल से नहाये थे, तब से यह प्रथा शुरू हुई। यह स्नान करने से नरक से
मुक्ति मिलती है । इसलिए इसे नरक चतुर्दशी भी कहते है।
इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस दिन श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है और इस मन्त्र का उच्चारण किया जाता है—
*वसुदेव सुत देवं , नरकासुर मर्दनमः ।*
*देवकी परमानन्दं, कृष्णम वंदे जगत गुरुम ।।*
दक्षिण भारत में भगवान की यह विजय विशेष तरीके से मनाते है। इस दिन लोग सूर्योदय से पहले उठकर तेल और कुमकुम को मिलाकर रक्त का रूप देते है। फिर एक कड़वा फल तोड़ा जाता है जो नरकासुर के सिर को तोड़े जाने का प्रतीक होता है। फल तोड़कर कुमकुम वाला तेल
मस्तक पर लगाया जाता है। फिर तेल और चन्दन पाउडर आदि मिलाकर इससे स्नान किया जाता है।
*अलग अलग हिस्से में इस त्यौहार को अलग तरह से मनाया जाता है।*
बंगाल में यह दिन काली चौदस के नाम से जाना जाता है। महाकाली देवी शक्ति के जन्मदिन के रूप में इसे मनाया जाता है। काली माँ की बड़ी बड़ी मूर्तियां बना कर पूजा की जाती है। यह आलस्य तथा अन्य बुराईयों को त्याग कर जीवन को रोशन करने का दिन माना जाता है। कुछ जगह भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके देवताओं को राजा
बलि के आतंक से मुक्ति दिलाई थी। भगवान ने राजा बलि से वामन अवतार के रूप में तीन पैर जितनी जमीन दान के रूप में मांगकर उसका
अंत किया था । राजा बलि के बहुत ज्ञानी होने के कारण भगवान विष्णु ने उसे साल में एक दिन याद किये जाने का वरदान दिया था। अतः नरक चतुर्दशी ज्ञान की रौशनी से जगमगाने का दिन माना जाता है। इस दिन हनुमान जी की विशेष पूजा भी की जाती है। इस दिन बचपन में हनुमान जी ने सूर्य को खाने की वस्तु समझ कर अपने मुंह में ले लिया था। इस कारण चारों और अंधकार फैल गया। बाद में सूर्य को इंद्र देवता ने मुक्त करवाया था। कुछ लोग रूप चतुर्दशी का व्रत रखते है। रूप चौदस की कहानी सुनते है।
एक योगी ने खुद को भगवान के ध्यान में लीन करते हुए समाधी लगाई। समाधी लगाने के कुछ दिन बाद ही उनके शरीर में कीड़े पड़ गए।
बालों में भी कीड़े पड़ गए। आँखों की पलकों और भौहों में भी जुएँ पैदा हो गई। इससे परेशान योगी की समाधी जल्द ही टूट गई। अपने शरीर की दुर्दशा देखकर योगी को बड़ा दुःख हुआ। नारद जी वीणा और खरताल बजाते हुए वहाँ से गुजर रहे थे। योगी ने नारद जी को रोककर पूछा की प्रभु चिंतन में लीन होने की चाह होने पर भी यह दुर्दशा क्यों हुई।
नारद जी बोले। हे योगिराज आपने प्रभु चिंतन तो किया लेकिन देह आचार नहीं किया। क्योंकि यह कैसे करते है आपको पता ही नहीं है।
समाधी में लीन होने से पहले देह आचार कर लेते तो आपकी यह दशा नहीं होती। योगिराज ने पूछा अब क्या करना चाहिए। तब नारद जी ने
कहा की आपको रूप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल की मालिश करें। इसके बाद अपामार्ग ( चिचड़ी ) का पौधा जल में डालकर उस जल से स्नान करें। इस दिन व्रत रखते हुए विधि विधान से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें तो आपका शरीर स्वस्थ और रूपवान हो जायेगा। योगिराज के ऐसे करने पर वे स्वस्थ और रूपवान हो गए।
*रूप चौदस का दिन बहुत शुभ दिन है। अतः प्रसन्न रहकर भक्तिभाव से अपने इष्ट की पूजा करने से अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है।*
*रूप चतुर्दशी / यमराज का 1000 साल से ज्यादा पुराना मंदिर, जहां कामदेव को मिला था जीवनदान*
*मान्यता धोखा और ठगी से पीड़ित लोगों को इस यम मंदिर में मिलता है न्याय*
तमिलनाडु के तंजावुर जिले में थिरुचिट्रमबलम में यम तीर्थ स्थित है। ये मंदिर मृत्यु के देवता यम को समर्पित है। यहां धर्मराज स्वामी के रूप में इनकी पूजा की जाती है। ये मंदिर भगवान शिव, कामदेव और यमराज से जुड़ा है। माना जाता है कि भगवान शिव के तीसरे नैत्र से भस्म हुए कामदेव को इसी जगह यमराज द्वारा जीवनदान दिया गया था। इसलिए यहां मृत्यु के देवता यम की पूजा की जाती है।
*करीब 1000 साल से ज्यादा पुराना मंदिर*
यमराज का ये मंदिर लगभग 1 से 2 हजार साल पुराना है। इस मंदिर में प्रमुख देवता के रूप में धर्मराज यम की पूजा की जाती है। यहां भैंसे पर बैठै हुए यमराज की मूर्ति है। यहां होने वाले 10 दिन के आदी त्योहार के दौरान धर्मराज यम को राजा के रूप में शाही तरीके से तैयार किया जाता है। जैसे वो शिकार के लिए जा रहे हो। यमराज की इस मूर्ति के हाथों में रस्सी, ताड़ के पत्ते और गदा हैं। मूर्ति के पास ही नीचे काल नाम का उनका दूत और चित्रगुप्त विराजमान हैं। यहां नैवेद्य के रूप में कच्चे चावल का हलवा चढ़ाया जाता है। कामदेव को यहां जीवनदान मिलने के कारण इस जगह को कामन पोटल भी कहा जाता है।
*अन्य देवता*
यहां पम्बति सिद्ध स्वामी,अय्यनार और उनकी पत्नी पूर्णा और पुष्कला की मूर्तियां भी हैं। इनके साथ ही इस मंदिर में धर्मराज यम के प्रकोप को कम करने के लिए भगवान राजा गणपति को सामने और पीछे की ओर भगवान बलदंडयुथपानी को विराजमान किया हुआ है। इस मंदिर में दक्षिण भारत के देवी-देवता वीरनार, रक्काची, मुथुमानी, करुप्पु सामी, कोम्बुक्करन और वाडुवाची भी हैं।
*मंदिर का महत्व*
धर्मराज यम को न्याय का देवता माना गया है। इसलिए जिन लोगों के साथ धोखा या ठगी हुई हो या जिन लोगों का कोई सामान खो गया हो वो लोग यहां न्याय पाने के लिए प्रार्थना करने आते हैं। लोग यहां अपनी परेशानी या प्रार्थना को एक कागज में लिखकर त्रिशूल पर बांध देते हैं। मान्यता के अनुसार ऐसा करने पर थोड़े ही दिनों में वो परेशानी खत्म हो जाती है और मनोकामना भी पूरे हो जाती है। इसे पडी कटुधल कहा जाता है। लंबी उम्र पाने के लिए यहां अयुल वृद्धि होम के रूप में शनिवार को विशेष होम किया जाता है।
मान्यता है कि इस मंदिर में धर्मराज स्वामी यम के दर्शन करने से पाप और बुरे दोष खत्म हो जाते हैं। इसके साथ ही लंबी उम्र मिलती है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने वाल लोगों की अकाल मृत्यु नहीं होती। कार्तिक महीने की चतुर्दशी तिथि को यहां धर्मराज यम की विशेष पूजा की जाती है। इस मंदिर में यमराज के क्रोध के डर से महिलाएं इस मंदिर में स्नान नहीं करतीं।
*मंदिर की कहानी*
पौराणिक कथाओं के अनुसार,एक बार सभी देवी-देवता भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत गए। वहां भगवान शिव अपने नैत्र बंदकर के तपस्या में लीन बैठे थे। देवी-देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव का ध्यान भंग करने के लिए प्रेरित किया। कामदेव ने जैसे ही भगवान शिव का ध्यान भंग किया उसी समय भगवान के तीनों नैत्र खुल गए और भगवान शिव के नैत्रों में से अग्नि निकली, जिससे कामदेव वहीं भस्म हो गए। कामदेव के प्राण त्याग देने के बाद उनकी पत्नी रति को बहुत दुख हुआ। इसके बाद धर्मराज यम ने कामदेव को जीवनदान देने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की। माना जाता है इसी जगह कामदेव को जीवनदान मिला। इसके बाद इसी जगह धर्मराज यम ने लोगों के प्राण लेने वाले इस कार्य के लिए भगवान शिव से अनुमति ली और भगवान शिव ने यमराज को अनुमति दी। इसी कहानी के अनुसार धर्मराज यम का ये मंदिर बना।
*रूप, सौंदर्य और माँ लक्ष्मी के आशीर्वाद के साथ आपको और आपके पूरे परिवार को अन्तरा शब्दशक्ति की ओर से रूप चतुर्दशी की मंगलकामनाऐं।*
*संकलनकर्ता*
*संस्थापक एवं संपादक*
*डॉ प्रीति समकित सुराना*
15-नेहरू चौक
वारासिवनी (मप्र)
No comments:
Post a Comment