शेष-विशेष यादें हैदराबाद यात्रा की (19-20-21-22/09/2019)
यूँ तो हैदराबाद पहली बार नहीं गए थे पर कुछ यात्राएँ यादगार भी होती हैं और विशेष भी।
वारासिवनी से 19 सितम्बर सुबह 8:30 पर समकित जी मुझे और विवेक भैय्या मीना को वारासिवनी रेलवे स्टेशन छोड़ने आए। वारासिवनी से गोंदिया पहुंचे Rishi ने नागपुर की ट्रेन में बिठा दिया। लगभग 1:30 बजे हम नागपुर पहुँचे। वंदना जी ने धार से 2 दिन पहले ही मन बनाया की साथ चलना ही है और वो 18 की रात घर से रवाना हो चुकी थी, सुबह दक्षिण एक्सप्रेस से @कीर्ती रवाना हुई। उसी ट्रेन उसी बोगी में Vandana जी भोपाल से बैठीं। ये दोनों नागपुर पहुँचे तब तक मैं और Meena घर यानि मासी सास के यहाँ पहुँचे। गरम गरम खाना खाया। कुछ देर आराम किया। फिर Vasuundhara मिलने आई, गपशप चाय नाश्ते के बीच दिसम्बर के आयोजन की रूपरेखा पर बात हुई फिर एक हॉल देखने गए आयोजन के लिए वहीं से तेज बारिश में वसु ने स्टेशन छोड़ा। और मैं और मीना ट्रेन में बैठे।
एक साथ चार सखियाँ ट्रेन से ही मस्ती, और बातों का पिटारा खुल चुका था। देर रात तक बातें चलती रही। सुबह 5 बजे हैदराबाद पहुँचे अन्तरा शब्दशक्ति की मातृशक्ति एक ऐसे आयोजन के लिए जिसने जीवन में गर्व करने का अवसर दिया।
शुद्ध शाकाहारी होटल राजमाता स्टेशन के बिल्कुल सामने प्रकाश बोलकी जी (उद्योगपति एवं समाजसेवी,सिंध बैंक के चेयरमैन) का पूर्ण रूप से अनुकूल, सुंदर और स्वादिष्ट व्यंजनों वाला था। प्रकाश जी का आतिथ्य-सत्कार अतुलनीय था। चाय नाश्ते के बाद सफर की थकान के कारण मैंने तो आराम किया उस बीच मीना और वंदना जी बिलड़ा मंदिर भी हो आए और शॉपिंग शुरू भी कर दी। मुझे 10:30 बजे जगाया।
सुनीता जी को हमारे साथ होना था पर उनका कहीं पिकनिक का कार्यक्रम पहले से तय था। ऐसे में बिना होस्ट के दिन कैसे बिताएं क्योंकि तैयारी तो माचिस की तीली से सम्मान तक हम करके गए थे तो निश्चिन्त थे। आयोजन में भोजन और हाइटी की व्यवस्था राजमाता होटल से बोलाकी जी को ही सौंप दी थी सो पूरा दिन खाली था।
बुआ को घर से निकलने के पहले ही फोन कर दिया था, 12:30 बजे हम बुआ के घर पहुंचे, खूब मजे किये जो पिछली पोस्ट में लिख चुकी हूँ, विशेष भोजन की थाली की फ़ोटो कीर्ति, वंदना जी, मीना के आग्रह पर ली गई😋। वहाँ से हम 2 बजे आइनॉक्स पहुंचे बचपन तो जी ही रहे थे छिछोरे देखने का मन बना लिया लेकिन शो शुरू हो चुका था, पता किया तो मंत्रा मॉल में वही शो 4:30 बजे था तो paytm से टिकट्स बुक करवा ली। लेकिन लेडीज़ शॉपिंग मॉल से निकले कैसे??खूब सारी शॉपिंग की,..!
बहुत कोशिशों के बाद मजबूरी में मॉल से निकले, मूसलाधार बारिश, साथ में इतना सामान और मंत्रा मॉल 13 किमी। पर मस्ती में ऐसी हालत में भी छिछोरे देखने गए, जिसकी पोस्ट और रिव्यु मैंने उसी दिन पोस्ट किए थे। पैरेंट्स को जरूर देखनी चाहिए ये मूवी, सिर्फ फन नहीं बड़ा सा मैसेज है दर्शकों के लिए। वहाँ एक पैकेट बिस्किट के लिए हमने भी कम छिछोरेपन नहीं किये। हुआ यूँ कि हाईपोग्लुसोमिया के कारण मेरे बैग में टॉफ़ीस, एनर्जी ड्रिंक के पाउचेस और बिस्किट होता है जो थियेटर में ले जाना मना होता है सो सिक्योरिटी ने निवेदन के बाद भी निकाल लिया। कीर्ति और वंदना जी मूवी के बाद बाकायदा वो पैकेट ढूंढकर(बहुत सामानों के बीच से) वापस माँग लाई। और एक विशेष बात, पूरे दिन में 4 बार ऑटो में 4 लेडिस कैसे बैठे??? तो सामने सीट पर बैठने का परम सुख हर बार वंदना जी को दिया गया।😋🤗🤣
अब रास्ते में सुनीता जी के कॉल आने शुरू हो गए, क्योंकि वो पिकनिक से लौट आईं थी और डिनर बोलाकी के यहाँ था। बारिश और ट्रैफिक के कारण शर्मिन्दा होते हुए 9:30 हम उनके घर पहुंचे। और मैं तो जाते ही उनके पैट 'डिस्को' पर और डिस्को मुझपर फिदा हो गया (जो एल्बम में आपको भी दिखेगा)।
प्रकाश जी ने परिवार के सभी सदस्यों के साथ परिचय करवाया, लज़ीज़ भोजन करवाया, हैदराबाद फिर आने की अनेक वजहें और जगहें बता दी उन्होंने। बहुत जरूरी और अच्छे विषयों पर परिचर्चा भी हुई। और रात 12 बजे वो हमें वापस होटल तक छोड़ने आए। रात सुनीता दी भी साथ रुकी। आधे घंटे में आयोजन के संचालक को दी जाने वाली रूपरेखा बनाई और 1:39 बजे सोए क्योंकि सुबह जल्दी उर्दू हॉल पहुंचकर बैनर आदि लगवाना था।
सुबह 9:30 बजे हम वहाँ पहुंचे। सुहास भटनागर (रंगमंच के बहुत प्रसिध्द कलाकार, हैदराबाद), बालकृष्ण महाजन जी, संजय बर्वे जी, कृष्णकांत जी नागपुर से आ चुके थे। उर्दू हॉल के वयोवृद्ध काका जी और इन सभी ने बैनर से लेकर ट्रॉफी आदि व्यवस्थित करने में बहुत सहायता की जिसके लिए अन्तरा परिवार हृदय से आभारी है।
कार्यक्रम के चार सत्र उद्घाटन, गोष्ठी, सम्मान और समापन के साथ भोजन/चाय-काफी-नाश्ता सब कुछ व्यवस्थित हुआ।लोकल टीवी का कवरेज मिला। कार्यक्रम ने अन्तरा शब्दशक्ति के लिए एक कीर्तिमान गढ़ दिया। जिसका पूरा विवरण सचित्र पहले पोस्ट किया है।
अहिल्या मिश्र जी, ऋषभदेव जी, गोयल जी, नीरज जी, प्रकाश बोलकी जी, पद्मजा अय्यंगार पैड़ी जी, तशमीन जौहर जी, सुमन बैद जी, कोरियन मोना जी, कुमुदबाल जी आदि से मिलना हम सबका सौभाग्य रहा जिसका श्रेय सुनीता जी को जाता है क्योंकि हैदराबाद के सभी दिग्गजों से मिलना उनके कारण ही संभव हुआ। बाहर से आए सभी मित्रों की सहृदयता का भी बहुत आभार की मेरे छोटे से निवेदन से पधारकर कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग दिया।
शाम 6 बजे होटल पहुंचे तब तक मेरी बैटरी तो डाउन हो गई थी :(। सुनीता दी पहले ही जा चुकी थीं, वंदना जी सहेली के घर चली गईं, कीर्ति और मीना चार मीनार घूमकर शॉपिंग कर आए और हम तब तक सो लिए। 10:30 बजे ट्रेन थी। प्रकाश जी ने अंत तक रुककर विदा किया उनका आतिथ्य सत्कार के लिए आभार शब्द बहुत छोटा है। सुनीता जी का हार्दिक आभार की उन्होंने इतने अच्छे अतिथियों से रूबरू करवाया।
सुबह 9 बजे हम नागपुर उतरे, नागपुर से गोंदिया, गोंदिया से वारासिवनी 22 को दोपहर 3 बजे पहुंचे। लगभग उसी समय कीर्ति भी इटारसी से बाबई पहुंची।
तीनों सखियों के सहयोग के लिए भी आभार बहुत छोटा शब्द है मायने रखती है यादें, कार्यक्रम की सफलता।
साझा तो सबकुछ तभी करना चाहती थी पर 23 की सुबह नए सफर पर निकलना था इसलिए आकर तैयारियों में जुटना पड़ा। रात 10 बजे लौटी हूँ। नए सफर के बारे में अभी कुछ नहीं कहूँगी, बस इतना कि छोटा सा ख्वाब है उसे पूरा करने की कोशिश में हूँ।
दुआ दीजियेगा कि जी लूँ जी भर🙏🏼😊❤️
प्रीति सुराना
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