मैं
मौत को पल-पल महसूस करती हूँ
फिर भी जिंदा हूँ इसलिए जीती हूँ
खैर
ये वो दर्द था जो साझा करती थी
हमेशा सबसे निकटतम रिश्ता जो था हमारा,..
पर अब
समझ और विश्वास के सारे पुल टूट गए
इस बारिश में
अब सिर्फ कीचड़ बाकी है, जीवन के हर मोड़ पर,..
कभी कभी
मन करता है मेरा
एक रचनाकार हूँ,
लिखूं क्लिष्टम भाषा में,
अनैतिकता, भ्रष्टाचार, राजनीति, छल-प्रपंच,
बलात्कार, अनैतिक संबंधों और भावनात्मक शोषण पर,..
लेकिन
रुक जाती है कलम
क्योंकि जिस भी विषय पर लिखना चाहूँ
आसपास मीलों तक अपनों की भीड़ तो दूर
खुद के भीतर भी इनमें से कोई न कोई किरदार नज़र आ जाता है
कैसे लिखूं अपनों की ही फेहरिश्त,...
खैर
जाने दो
बस कुछ दिन
हम हो रहे हैं न रुबरु
एक कंफेशन बॉक्स की तरह
अपने इष्ट, अपने बुजुर्ग, अपने सबसे करीबी रिश्तों के बीच बैठकर,
देंगे हमारे सारे मनमुटाव, झगड़े, कलह और अविश्वास का लेखाजोखा,...
मैं
मौत को पल-पल महसूस करती हूँ
फिर भी जिंदा हूँ इसलिए जीती हूँ
रिश्ते के अनचाहे
मगर
सिर्फ इस आखरी पल के लिए!
प्रीति सुराना
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