Wednesday, 7 August 2019

तुम आश्रित थे

(आओ सुनाऊं, एक सच्ची कहानी
हर गली में मिलेंगे ऐसे राजा-रानी)

हे पुरुष!
नमन तुम्हारे पुरुषत्व को,..!

बचपन में
गली के लड़कों से जब-जब झगड़कर आए
और पिता ने हरामखोर कहा, हाथ उठाया
लातों से पीटा और भोजन तक नहीं दिया
तब न पिता से संबंध तोड़ा न जीवन से निकला,
क्योंकि तुम आश्रित थे

किशोरावस्था में
स्कूल में रास्ते में लड़कियों को छेड़ा,
कक्षा की टेबल पर भद्दे वाक्य लिखे,
शिक्षकों ने सजा दी, कक्षा से निकला,
तब न स्कूल छोड़ा, न शिक्षक पर हाथ उठाया,
क्योंकि तुम आश्रित थे

युवावस्था में
कालेज की लड़कियों के साथ बदसलूकी की,
यार दोस्तों में बैठकर सिगरेट और शराब पी,
माँ-बहन के नाम पर बात-बात में गालियाँ दी,
पर न कालेज छोड़ा न कैरियर
क्योंकि तुम आश्रित थे

प्रौढ़ावस्था में
विवाह के बाद पत्नि को अपनी संपत्ति समझा
घर की बहू और नौकरानी की भूमिका निभवाई
कभी प्रेम किया, कभी डाँटा, मारा, गालियां दी,
पर घर से नहीं निकला
क्योंकि तुम आश्रित थे

जीवन में
प्रेम किया, भोग किया, उपभोग किया जिस स्त्री से
तन पर, मन पर, धन पर जी भर कर अधिकार जताया,
जब उस स्त्री ने माँ बहन की गाली न सही तुम्हें हरामखोर कहा
जब उसी स्त्री ने प्रतिकार किया तो तिलमिला उठे तुम
और निकाल कर फेंक दिया उसे जीवन से,
क्योंकि तुम उसपर आश्रित होते हुए भी
ये जानते थे कि ये वो रिश्ता है
जिसके हज़ारों विकल्प हैं
जैसे एक विकल्प चुना वैसे अनेक मिलेंगे।
लानत है उन सारी स्त्रियों पर भी जो विकल्प बनती हैं।

हे पुरुष!
नमन तुम्हारे ऐसे पुरुषत्व को
जिसके लिए प्रेम आधुनिक डिस्पोजल मटेरियल से अधिक कुछ भी नहीं।
देखना, सोचना, समझना, पता लगाना
हर गली में मिलेंगी ऐसी सच्ची कहानी

प्रीति सुराना

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