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शोर बहुत है मन के घर में पीर उठी है ऊंचे स्वर में
मन मानस उलझे आपस में जाने जीते कौन समर में
टूट गया है मन का आंगन गम ही गम है मेरे दर में
सड़कों पर दिखती लाचारी कौन नहीं मजबूर शहर में
साथ नहीं कोई चल पाया छोड़ गये सब प्रीत डगर में
प्रीति सुराना
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