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न देख नमी इन आंखों की मेरे होठों की मुस्कान को देख, न महसूस मेरे मन की कोमलता मेरे चेहरे के अभिमान को देख, क्यों रुकना अंतर्द्वन्द से उठते अंतस के कोलाहल को सुन, बिखरा रहने दे भीतर सब कुछ बाहर पसरे सामान को देख,... प्रीति सुराना
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