Wednesday 6 September 2017

एकाकी

एकाकी

खुद को एकाकी पाया है
जीवन के हर मोड़ पर
अब विश्वास लगा डोलने
रिश्तों के गठजोड़ पर

दुनिया में अब भी नेकी है
मैंने दुनिया देखी है
लेकिन अनुभव की परिपाटी
पहुंची न इस निचोड़ पर
अब विश्वास लगा डोलने
रिश्तों के गठजोड़ पर
खुद को एकाकी पाया है
जीवन के हर मोड़ पर

मन में *आशाओं* को मैंने
दीपक बनकर पाला है
जलकर जग को दिया उजाला
बस अपने तल को छोड़कर
अब विश्वास लगा डोलने
रिश्तों के गठजोड़ पर
खुद को एकाकी पाया है
जीवन के हर मोड़ पर

देह न तजती सांसे तब तक
कर्तव्यनिष्ठ ही रहना है
और पलायन भी वर्जित है
सहने की सीमा तोड़ कर
अब विश्वास लगा डोलने
रिश्तों के गठजोड़ पर
खुद को एकाकी पाया है
जीवन के हर मोड़ पर,...

प्रीति सुराना

3 comments:

  1. आपकी इस पस्तुति का लिंक 07-09-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2720 में दीिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. भावनाओं पर कर्तव्य की ही जीत होती है ! एकाकी रहना और अकेले रह जाना दोनों में से चुनना होता है । अंग्रेजी में कहीं पढ़ा था - Being alone is better than being lonely.
    बहुत अच्छा लिखा है आपने

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