Thursday 30 July 2015

धूप का टुकड़ा,..

एक रिश्ता
तभी लंबी उम्र जीता है
जब उसमें प्यार
भले ही एक तरफ़ा हो,..
लेकिन
भरोसा
और
रिश्ते को खो देने का डर
दोनों तरफ हो,..

हां
मैं तुम्हें प्यार करती हूं
खुद से ज्यादा,..
तुम पर
विश्वास है मुझे
खुद से ज्यादा,..
मैं तुम्हें खो देने के
ख़याल से भी
घबरा जाती हूं,..

सुनो
तुम्हारी नज़रों से
ओझल होते ही,..
मैंने देखा है तुम्हें मुझे ढूंढते हुए,..
इस यकीन के साथ
कि मैं हूं यहीं कहीं
तुम्हारे आसपास,..
अब बस तुम न भी कहो
मुझसे प्यार है,..

अब
मैं जी लूंगी
पूरी जिन्दगी
ख़ुशी-ख़ुशी
तुम्हारे लिए
तुम्हारे साथ
हमारे
मजबूत रिश्ते की
एक लंबी उम्र,..

देखो
हमारे कमरे की दीवार पर लगी अलगनी पर पड़ रही धूप,..
ऐसा लगता है मानो अटका रखा हो,
अलगनी पर एक धूप का टुकड़ा,..
जो पर्याप्त है पूरे कमरे में रौशनी के लिए,..
बिल्कुल उस प्यार की तरह
जो तुमने कभी जताया नहीं
पर मौजूद है हमारे दरमियान,.. है ना!! ,...प्रीति सुराना

2 comments:

  1. प्यार जीवंत रहे
    शुभकामनाएं !
    सुन्दर कविता

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर जीवन्त भाव है आपकी कविता में।
    स्वयं शून्य

    ReplyDelete