Sunday 17 March 2013

बेचारा सूरज


शाम को छत पर बैठे बैठे यूंही खयाल आया
सूरज संध्या से कितना प्यार करता है न,...?
इतना कि 

कुछ पल संध्या के साथ बिताने के लिए 
निशा के दामन में टंके तारे 
गिन गिन कर इंतजार करता है
और
उषा के आते ही काम पर लगा रहता है
सारे जग की प्रकाश व्यवस्था संभालता है
ताकि संसार अपनी आजीविका ठीक से चला सके
और 
उस पर बेईमान मौसम,
कभी बादल तो कभी हवा छेड़ने को
कभी भी आ जाते हैं यादों के संदेश लेकर
और 
बेचारा सूरज कभी छुपकर 
कभी तमतमाकर जलता भुनता
तड़पता रहता है मिलने को संध्या से
और
मिलते ही कुछ देर में आ जाता है 
चांद निशा के साथ
संध्या के स्वपन महल की चौकसी के लिए

फिर रह जाता है सूरज अकेला
कल फिर मिलने की उम्मीद लेकर दिल में प्यार लिए 
अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करता हुआ,...,..........प्रीति सुराना

13 comments:

  1. एकदम सटीक और सार्थक प्रस्तुति आभार

    बहुत सुद्नर आभार अपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    एक शाम तो उधार दो

    आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे

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  2. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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  3. बढ़िया है आदरेया-
    आभार-

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  4. बहुत ही सुन्दर भाव की प्रस्तुति,आभार.

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  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  6. वाह सुंदर प्रस्तुति
    बधाई

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  7. सूरज की उलझन को,उसकी प्रीत को खूब पढ़ा और सुन्दर शब्दों में गढ़ा......

    अनु

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