Sunday 17 February 2013

अपना नाम जो लिख दिया


सुनो 

तुम्हे याद है 
मैंने एक बार कहा था 
मैं एक खुली किताब हूं 
जिसमें 
रिश्ते-नाते, 
प्यार-दोस्ती, 
अपने-पराए,
सबने अपनी-अपनी इबारतें लिखी 
सबकी स्याही के रंग अलग-अलग थे 
विषय अलग-अलग थे 

अधिकार-कर्तव्य, 
आंसू-हंसी 
खुशी-गम
पाना-खोना 
प्यार -गुस्सा
गिले-शिकवे 
सच-झूठ 
अरमान-सपने,
व्यवहार-व्यापार 
सपने-हसरतें 

सभी ने अपने-अपने हिस्से हथिया लिए 
पर मैंने चोरी से 
किताब के बीचोबीच का 
एक बिल्कुल कोरा पन्ना बचाकर 
तुम्हे दिया था 
और कहा था 
ये पन्ना मेरा मन है 
लिख दो अपने पसंद के रंग की स्याही से 
जो चाहो .....
और तुमने  स्याह रंग से कुछ लिख दिया,...

पहले तो मैं घबराई 
फिर मैने सब रंगो को मिलाकर देखा 
तो स्याह हो गया 
फिर उस रंग पर 
किसी रंग के मिलने से कोई फर्क नही पड़ा 
और मेरी जिंदगी की किताब के 
बीच के उस पन्ने यानि मेरे मन में 
अगले-पिछले सारे पन्नों के विषय भी सिमट गए 
और मेरे मन का पन्ना मेरे लिए सब कुछ बन गया 
वहां तुमने अपना नाम जो लिख दिया था

मेरे तुम,........प्रीति सुराना 

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